हमारा पहला प्यार...
>> Thursday, August 24, 2006
हमारा पहला प्यार
उधर से जब फूल आने लगे,
हमारे दिल के बाग लेहराने लगे ।
बहुत शुक्रिया जो इक्रार किया,
दिल-ही-दिल हम मुस्कुरने लगे ।
हर दिन, हर रात,
हमे नज़र वोह आने लगे ।
हम छोड अपन लेक्चर,
उन्के पीछे जाने लगे ।
दोस्तो, सन्गी, साथी से,
खुद को दीवन केहल्वाने लगे ।
इक्क दिन जब पूछ बेडे जब सनम से,
जीवन सन्गी बनोगे ।
हंस कर बोला सनम,
पन्छी से पूछते हो पिन्जरे में फ्सोगे ।
फिर बोला बेवफ़ा इस कदर कुछ,
"यह तो इक्क मज़ाक था,
तुमहारा ही बनया हुआ इक्क झाग था.
हमने तो शर्त लगई थी,
यह बेवफ़ी नही, क्योंकी हम ने तुमसे नज़र लडाई ही नही थी."
जब सुना हमने यह सब,
नदिया में कूद लगाई थी ।
यमदूत महाश्य ले गये थे, तब
धर्मराज के दरबार में हमारी सुनवाई थी ।
यह एक और मत्यु लोक का प्राणी आया है,
साथ में अपने, प्रेम रोग लाया है ।
तब धर्म राज ने यह घोशना कर्वाई थी,
फ़ेको नर्क में, इसने, खुद-ही-को खुद्खुशी कर्वाई थी ।
जब मांगी हमने शमा, धर्मराज ने यह आवाज़ लगई थी,
वोह कैसी थी जिस कारण तुमने इधर दौड लगाई थी ।
जब किया बखान हमने, अपने बेवफ़ा सनम का,
धर्मराज की भी आंख भर आई थी ।
भेझो इसे वापिस,
उन्होने यह आवाज़ लगाई थी ।
जब पहुन्चे नीचे,
सनम ने गाल पर हमरे चपत लगाई थी ।
मालूम चला नींद से,
आंख हमारी खुल आयी थी ।
जब देखा घुमा नज़र,
चारो और खुद-ही की हंसी उडवाई थी ।
सोच लिया हम ने तब से,
ए-दिल सब कुच्छ करन मगर कभी किसी से प्यार मत करना ।