>> Saturday, December 02, 2006

वो जो कभी देखता था मुझे दीवानो की तरह,

निगाहों में उसकी यह्रील येह प्याला क्यों है.

वो जो कहता था कभी मुझ्को ही दुनीया अपनी,

उसकी दुनीय मे आज मुझपे ही पेहरा क्यों है.

समाया है जो सान्सों में मेरी खुशबू की तरह,

याद पे उसकी ही जुदायी का साया क्यों है.

धडकती है धडकन भी हर लम्हा नाम से जिसकी,

हाथ में उसके ही यह यह हाथ पराया क्यों है

देखती हू टूटा हुया बरबाद आयीना-ए-दिल जब भी,

हर टुकडे, हर कत्रे में बस वोही नज़र आता है.

जनती हू आज कुछ भी तो नही हू मैं उसकी,

फ़िर ज़िन्दगी के हर एह्सास मे सिर्फ़ वोही वो समया क्यों है.

वो नस-नस में दौड्ता है मेरी बनके लहू,

मेरी किसमत में उसी से यह फ़सला क्यों है.

वो जो हसत है मेरी रुह में रग-ए-जान की तरह,

साथ नही उसक तो जिन्दगी का यह सिलसिला क्यों हैं.

ए खुदा अब दो मुझे जवाब सब सवालों के मेरे,

या फ़िर मिटा दो मुझे खतम कर दो यह घुटन,

जो नही है मेरी बर्बादियों का कोई असर तुझ पर.

तो मेरी किस्मत के फ़ैसलों पे तेरा हक क्यों है.

वो जो बसत है मेरी रुह में रग-ए-जान की तरह

साथ नहि उसका तो जिन्दगी का यह सिलसिला क्यों है.

From: Suman

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